भारत के हदय स्थल के रूप में बसा मध्यप्रदेश प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता, विशेषकर वनों की विविधता के लिये जाना जाता है। मध्यप्रदेश प्राकृतिक संसाधनो के मामले में भारत के सबसे धनी राज्यों में से एक है। वनों से बहुमूल्य काष्ठ के साथ-साथ विभिन्न वन्य उत्पाद जैसे फल, चारा, गोंद, औषधि आदि प्राप्त होते है।
वन क्षेत्र के आसपास रहने वाले वनवासियों का जीवन वनों पर काफी निर्भर रहता है। दुर्लभ एवं संकटापन्न* प्रजातियों का न केवल आर्थिक महत्व है, बल्कि वनों को स्वस्थ रखने के साथ ही इनका सांस्कृतिक एवम् धार्मिक महत्व भी है। स्थानीय लोगों के लिए विभिन्न उत्सवों में इन वृक्षों का अपना एक महत्व रहा है, जिसकों सदियों से ये लोग एक परंपरा के रूप में अनुसरण करते आये है।
वनों पर निर्भर समुदायों के सामाजिक, आर्थिक उत्थान के लिए भी ये वृक्ष प्रजातियों का स्थान है। मध्यप्रदेश शुरू से ही पूरे देश में विभिन्न जडी बूटियों एवम् वन उपज के उत्पादन एवं उपयोग के लिए कच्चे माल का मुख्य स्रोत रहा है। बढ़ती जनसंख्या के कारण वनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण कुछ प्रजातियों की उपलब्धता में कमी आ रही है। इन प्रजातियों को संकटापन्न* प्रजाति के रूप में भी देखा जाता है।
जंगल की विविधता को बनाए रखने के लिए व जंगल में रहने वाले लोगों की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इन दुर्लभ ओर लुप्तप्राय प्रजातियों की सतत उपलब्धता महत्वपूर्ण है। यह सोचना गलत होगा कि इन प्रजातियों के विलुप्त होने का जंगल पर अधिक प्रभाव नहीं पडेगा। वनों की विविध प्रजातियाँ एक दूसरे पर कई अन्योन्य क्रियाओं हेतु निर्भर रहती है और इस प्रकार इनकी कमी से जंगल के स्वास्थ्य और परिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। इसलिए इन प्रजातियों का संरक्षण, संवर्धन तथा रोपण करने हेतु जागरूकता लाने के लिए एवम् संरक्षित करना आवश्यक है।
मध्यप्रदेश में दहिमन, बीजा, हल्दू, मैदा, कुचला, चिरौंजी, पाकर, गोंदी एवं रोहिना जैसे अन्य पौधे की 32 किस्में है जिनमें कुछ प्रजातियाँ दुर्लभ है एवम् कुछ संकटापन्न होने के कगार पर है। मध्यप्रदेश की अदवितीय जैव विविधिता को बनाए रखने के लिए सभी की भागीदारी आवश्यक है। हमें इन दुर्लभ व लुप्त होते वृक्षों को फिर से संरक्षित करना आवश्यक है। यदि हम समय रहते इन्हें बचाने के लिए प्रयास नहीं करेगें तो ये जल्द ही सिर्फ किताबों में सिमट कर रह जाएंगें। इन औषधीय पेड़ों के संरक्षण हेतु, मध्यप्रदेश के वन विभाग द्वारा विभिन्न दुर्लभ एवम् संकटापन्न प्रजातियों के 70 लाख पौधे तैयार किए है एवं व्यक्तिगत रूप से लोगों से उन्हें प्राप्त करने और अपने घरों के पास या अन्य सामुदाययिक एवम् सुरक्षित स्थनों में रोपने का अनुरोध करता है। लोग इन दुर्लभ ओर लुप्तप्राय पौधों के लिए अपने-अपने जिलों में वन विभाग से संपर्क कर सकते है।
इन पौधों के महत्व के प्रति नागरिकों को जागरूक करने हेतु वन विभाग निरंतर प्रयासरत है। MP MYGOV के माध्यम से सभी नागरिकों से विभाग अपील करता है कि नीचे चिन्हित किये गये विषयों पर अपने महत्वपूर्ण सुझाव साझा करें।
1. आपके क्षेत्र में इन दुर्लभ एवम् संकटापन्न प्रजातियों की स्थिति क्या है।
2. क्या आप लुप्तप्राय होते इन पौधों के बार में जानकारी रखते है।
3. इन वृक्षों को संरक्षित करने व कुशल वन प्रबंधन हेतु आपके पास किस तरह के उपाय एवं सुझाव
4. इस दुलर्भ एवम् संकटापन्न प्रजातियों का स्थानीय स्तर पर लोक क्या सोच है, क्या मान्यता है।
विभाग की ओर से ऐसे सभी व्यक्तियों को सराहा जायेगा जो इन पौधों को लगाते है।
______________________________________________________________________________________________________________________
*संकटापन्न – वृक्षों की वे प्रजातियाँ जो संकट में हैं
संकटापन्न प्रजातियों के वृक्षों की सम्पूर्ण सूची के लिए इस लिंक पर क्लिक करें -
https://mp.mygov.in/sites/default/files/mygov_15662988971581.pdf
kirtiumar jain 6 years 1 month ago
हमारा एक मोटो है अपना जन्मदिन बर्थडे हमारे साथ मनाएं एक पौधा गोद में हम उसके बड़ा करेंगे आओ बनाएं ग्रीन बुरहानपुर पानीदार बुरहानपुर एमपी भारत
kirtiumar jain 6 years 1 month ago
श्री बाल गजानन वाटिका लालबाग बुरहानपुर 2500 वृक्षारोपण स्थल एवं वर्षा जल संचयन जल पारी सतपुड़ा की जंगली पौधे पेड़ पीपल नीम सरस गुल्लर स प्रजाति लगाई है जो लेहला रही है एवं इस साल और 2000 पौधे लगाए एवं वर्षा जलरेनवाटर हार्वेस्टिंग हमने पहाड़ पर किया है जिससे 12 चेक डैम बना है पहाड़ी से जो पानी गिरे सुपारी के अंदर ही जाएगा जिससे करोडो लीटर पानीपहाड़ के अंदर जा चुका है पापा बड़े-बड़े गड्ढे किये है उसके अंदर पानी जा चुका है आओ बनाएं ग्रीन पानीदार बुरहानपुर एमपी भारत
Vardhaman jain 6 years 2 months ago
राजधानी से करीब 55 किमी दूर स्थित सलकनपुर में करीब 400 से ज्यादा प्रजातियों के पेड़-पौधे पाए जाते हैं। इनमें करीब 100 प्रजातियां ऐसी हैं जो या तो विलुप्ति की कगार पर है या फिर संकट में है। मसलन,सफेद पलाश और पीले कचनार जो पहले बहुतायत में सलकनपुर में ही पाए जाते थे वे अब कम ही नजर आते हैं। इसी तरह कौदू, कुटकी और गेहूं की कुछ प्रजाति जो पहले काफी मात्रा में ऊगाई जाती थी। अब समय के साथ इनमें भी कमी आने लगी है100 प्रजातियों के तत्काल संरक्षण की जरूरत है
नेशनल पार्क का उपयोग केवल टूरिस्म के लिए न करे
mahesh 6 years 2 months ago
nice <a href= "https://www.alljobalert.org">job</a>
Dr SHYAM SUNDER SINGH 6 years 2 months ago
सारा खेल जल का है।यदि आम जन और सरकारों ने जल स्रोतों का संरक्षण समय पर नहीं किया तो संकटापन्न और संरक्षित कोई भी प्रजाति नहीं बचेगी। इसलिए मूल समस्या को केंद्र में रखकर ,जन जागरूकता फैलाकर आपसी सहयोग एवं समन्वय स्थापित कर के मध्य प्रदेश के अद्वितीय जैव विविधता को संरक्षित किया जा सकता है।
BASANT KUMAR SONI 6 years 2 months ago
'Eco Friendly Art'(#JaivikArt)created from Dried sturdy flowers/leaves/grass/vegetable-barks etc(Before Perishing).Waste Bark-Canvas of Palm/Bamboo Trees selected as paiinting surface. Innovation of Art combines with Environment Protection.Instead of Paper-canvas using barks canvas saving cutting of Trees. Also by recycling of waste of flowers/leaves etc not applying any chemical colors An Organic Portrait ART enclosed.Organic art is taught On-line through http://ifaaonline.com/Organic.art
Ratna wadhwani 6 years 2 months ago
Save biodiversity and ecosystem management by awareness in public
Aman Kumar Sahani 6 years 2 months ago
we can save tree by making a law
every goverment workers have to plant atleast a tree each month and take care of that
and atleast one tree should be at home so that atleast we can balance the oqygen level
RAJENDRA PRASAD GUPTA 6 years 2 months ago
Create a Medicinal Garden in each and Every block. Try to conserve type species each species..
Sanya Chhabra 6 years 2 months ago
Government can make it compulsory for educational institutes and public sector/private sector companies to plan tree plantation activity once in a quarter. The track of this activity should be monitored and fine should be charged for inaction recorded.