You don't have javascript enabled. Please Enabled javascript for better performance.

अल्पविराम: स्वयं से बात करने की कला

Start Date: 27-08-2019
End Date: 29-10-2019

हमारी रोज की भाग दौड़ आज शारीरिक कम व मानसिक ज्यादा है, बाहर से ...

See details Hide details

हमारी रोज की भाग दौड़ आज शारीरिक कम व मानसिक ज्यादा है, बाहर से ज्यादा भगदड़ तो हमारे भीतर है। विचारों से लेकर चिंताओं, काल्पनिक डर, ईर्ष्या आदि की हमारे मन में मानो एक भीड़ सी लगी है। इन अंतर्मन के द्वन्द से खुद को बचाना और मन को शांत और एकाग्रचित करना अत्यंत आवश्यक है; क्योंकि लगातार चलते हुए बीच में यदि विश्राम नहीं करेंगे तो गिरना स्वाभाविक है।

शांत समय में अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुनना भी एक अभ्यास ही है। या फिर हम कहें कि यह एक प्रकार का ‘अल्पविराम’ है, जिसके माध्यम से हम स्वयं दिशा और मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। जरा सोचिए, यदि हम स्वयं आनंदित होंगे तभी तो दूसरों के आनंदित रहने का मार्ग प्रशस्त कर सकेंगे! हमारे द्वारा किये गए कार्य, जो स्वयं के साथ दूसरों को भी आनंदित करे इस बात का प्रमाण होते हैं कि हम किस तरह का व्यक्तित्व हैं और कैसा जीवन जी रहे हैं।

अपने आसपास के लोगों में सकारात्मक सोच विकसित करने के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक है, जिससे उनकी जीवनशैली, कार्यशैली एवं सहज जीवन को और अधिक विकसित और समृद्ध किया जा सके। ऐसा इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि सिर्फ भौतिक सुविधायें तथा समृध्दि ही आनंदपूर्ण मनोस्थिति का कारक नहीं होती। अतः यह आवश्यक है कि लोगों का दृष्टिकोण जीवन की परिपूर्णता की मौलिक समझ पर आधारित हो।

‘अल्पविराम’ राज्य आनंद संस्थान, आध्यात्म विभाग मध्य प्रदेश द्वारा संचालित एक ऐसी ही गतिविधि है, जिसके माध्यम से जीवन में सकारात्मक सोच को विकसित करने का प्रयास किया जा सके। क्योंकि यदि मन प्रसन्न होगा तो निश्चित ही उसका परिणाम लोगों की जीवन शैली व उनके व्यवहार में दिखेगा। ‘अल्पविराम’ कार्यक्रम का आनंद भी इसी खोज में है। अतः प्रदेश में लोगों को इसका अनुभव कराते हुये इस मार्ग पर सतत् रूप से चलाने व उन्हें प्रेरित करने के लिए ‘अल्पविराम’ एक उत्कृष्ट एवं अच्छा माध्यम है।

संस्थान द्वारा भोपाल तथा अन्य संभागीय मुख्यालयों में समय-समय पर एक दिवसीय अल्पविराम कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त सभी 51 जिलों में प्रशिक्षित आनंदम सहयोगियों के द्वारा भी 2 से 3 घंटे के यह कार्यक्रम होते हैं। हर माह के पहले एवं चौथे शनिवार को राज्य आनंद संस्थान, आध्यात्म विभाग के कार्यालय भवन, भोपाल में सुबह 10:30 से 5:30 बजे तक ‘अल्पविराम’ परिचय शिविर का आयोजन किया जाता है। शिविर में भाग लेने हेतु राज्य आनंद संस्थान की वेबसाइट https://www.anandsansthanmp.in/hi/index पर पंजीयन तथा विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

अल्पविराम कार्यक्रम में भाग ले चुके साथियों से अनुरोध है कि इस कार्यक्रम के पश्चात, आपके जीवन में जो भी परिवर्तन आया हो या आपने जो भी अनुभव किया हो उसे यहां हमारे साथ अवश्य साझा करें।

All Comments
Reset
128 Record(s) Found

Bhawna 6 years 2 months ago

क्या खुद से बातें करना मानसिक बीमारी की निशानी है?

अमेरिकी मनोचिकित्सक डॉ. लौरा एफ.डाबनी का मानना है कि यह बिल्कुल नॉर्मल है. खुद से बात करने की आदत मानसिक बीमारी या एबनॉर्मलिटी की निशानी नहीं है.

सच तो ये है कि हम सब खुद से बाते करते हैं. जब हम सार्वजनिक तौर पर खुद से ज़ोर-ज़ोर से बाते करने लगते हैं तब अजीब लग सकता है. लेकिन हम मन ही मन अपने आप से बाते किया करते हैं.

Bhawna 6 years 2 months ago

हम में से कइयों को खुद से बात करने की आदत होती है. अमूमन हम किसी विषय में सोचते हुए खुद से ही सवाल-जवाब करने लगते हैं. लेकिन कुछ लोगों को खुद से बात करने की आदत होती है. वह रोजाना खुद से बाते करते हैं. कभी-कभी आपकी नजर गई होगी तो आपने नोटिस किया होगा कि वो कुछ-कुछ खुद में ही बुदबुदाते भी रहते हैं. ऐसे में देखने वाले को यह एबनॉर्मलिटी या पागलपन की निशानी लग सकती है. पर क्या आपने सच में कभी जानने की कोशिश की है कि खुद से बातें करना नॉर्मल है या एबनॉर्मल?

Bhawna 6 years 2 months ago

जब कभी किसी भी चीज़ को लेकर नर्वस हों तो खुद से बाते करें. रिसर्च में यह बात सामने आई है कि ऐसे वक्त में खुद से बात कर के हम खुद से वो डर और नर्वसनेस निकालने में कामयाब होते हैं

Bhawna 6 years 2 months ago

डेली मिरर
काम करते वक्त या कोई खेल खेलते वक्त अगर कोई खुद से बात करना है तो आमतौर पर हम इसे सामान्य नहीं मानते। लेकिन हाल ही हुई एक रिसर्च में सामने आया है कि जो लोग कामकाज के वक्त खुद से बातें करते हैं, वह चुप होकर काम करने वाले लोगों की तुलना में अपने काम पर ज्यादा अच्छे तरीके से फोकस कर पाते हैं।

Bhawna 6 years 2 months ago

बेंगर यूनिवर्सिटी में हुई एक स्टडी में साइकॉलजिस्ट्स ने 28 लोगों को लिखित निर्देश दिए और उनसे इन निर्देशों को मन में या बोलकर पढ़ने को कहा। इस दौरान उनकी परफॉर्मेंस और कॉन्सनट्रेशन को परखा गया। शोधार्थियों ने पाया कि जिन लोगों ने निर्देशों को बोलकर पढ़ा, उनके दिमाग ने तथ्यों को उन लोगों की तुलना में अधिक अब्जॉर्ब किया, जिन्होंने इन्हें मन में पढ़ा।

Bhawna 6 years 2 months ago

न्यूरॉसाइकॉलजी ऐंड कॉगनेटिव साइकॉलजी की लेक्चरर और शोध से जुड़ी डॉक्टर पलोमा मेरी-बेफा के अनुसार 'हमारे शोध में सामने आया है कि परफॉर्मेंस के दौरान जब हम खुद से बात करते हैं तो हमारी परफॉर्मेंस कहीं अधिक बेहतर होती है। खासतौर पर जब हम मन में बोलने की जगह लाउड बोलकर बात करते हैं।' जब हमारा ध्यान अपने काम पर लगा हो और हम बोलकर खुद से बात कर रहे हों, तो यह इस बात का सिंबल है कि हमारा पूरा फोकस अपने काम पर है।

Bhawna 6 years 2 months ago

शोधार्धियों ने अपने शोध से जुड़े उदाहरणों के तौर पर कई स्पोर्ट्स स्टार्स का नाम सुझाया। जो खेल की जटिलताओं से निपटने के लिए मैच के दौरान खुद से बातें करते हैं। इनमें मारिया शारापोवा, सेरेना विलियम्स का नाम खासतौर से लिया गया। डॉक्टर पलोमा आगे कहती हैं 'शायद ऐसा करना उन्हें खेल के क्रूशल पॉइंट्स से निपटने और फोकस करने में मदद करता है। इसीलिए वह खेल को दौरान अक्सर खुद से कहते हैं 'कम-ऑन'।

Bhawna 6 years 2 months ago

अमरीका की विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर गेरी लुपयन कहते हैं कि तेज़ आवाज़ में ख़ुद से बात करना आपको भले अजीब लगे, लेकिन है ये कामयाबी का नुस्खा.

वो अपनी रिसर्च की बुनियाद पर कहते हैं कि ऐसा करने से आपका बहुत फ़ायदा हो सकता है.

I REE CONSTRUCTION INDIA PRIVATE LIMITED 6 years 2 months ago

अमरीका की विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर गेरी लुपयन कहते हैं कि तेज़ आवाज़ में ख़ुद से बात करना आपको भले अजीब लगे, लेकिन है ये कामयाबी का नुस्खा.

वो अपनी रिसर्च की बुनियाद पर कहते हैं कि ऐसा करने से आपका बहुत फ़ायदा हो सकता है.

I REE CONSTRUCTION INDIA PRIVATE LIMITED 6 years 2 months ago

दरअसल, ऐसे लोग अपने आपसे बातें करते हैं और जिसे आप दिमागी ख़लल कहकर ख़ारिज करते हैं, वो ख़ुद से बातें करने की आदत आपके लिए बड़े काम की साबित हो सकती है.

दुनिया में आज बहुत से एक्सपर्ट ये मशविरा देते हैं कि आप ख़ुद से बातें करें. उनके मुताबिक़ इससे याद्दाश्त तेज़ होती है. आत्मविश्वास भी बढ़ता है और आप ज़्यादा फ़ोकस हो जाते हैं.