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हमारे घर आंगन की गौरैया, घर आंगन से दूर न हो जाये

Start Date: 18-04-2019
End Date: 06-06-2019

गौरैया... जिसके नाम से अनगिनत किस्से-कहानियां दर्ज हैं हमारी ...

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गौरैया... जिसके नाम से अनगिनत किस्से-कहानियां दर्ज हैं हमारी स्मृतियों में, गौरैया हमारे बचपन की सबसे सुखद स्मृतियों में रची-बसी है। किसको याद नहीं होगा कि कैसे हम बचपन में लाई और चावल के दाने आंगन में डाला करते थे हमारी अपनी गौरैया के लिए… ‘हाँ अपनी!’ हमारे घर की चिड़िया ही तो थी वो; क्योंकि हमारे आस-पड़ोस के हर घर में इनका घोंसला होता था। आंगन में या छत की मुंडेर पर वे दाना चुगती हुई झुंड के झुंड फुदकती रहती थीं। कभी आंगन की धूल में फुर्र-फुर्र नहाती हुई, कभी आंगन में लगे आम, अमरुद और लताओं पर सुस्ताती हुई, तो कभी अपनी चोंच में घास के तिनके दबाए घोंसला बनाती हुई। सालों से ही हमारे उल्लास, स्वतंत्रता, परंपरा और संस्कृति की संवाहक और साझीदार...जिन्हें अपने घर आंगन में देखकर हमें इस बात की ख़ुशी होती थी कि प्रकृति की इस नन्हीं धरोहर को सहेजने में हम भी भागीदार हैं।

क्या हमनें कभी गौर किया है कि आंगन-आंगन चहकने वाली गौरैया ने पहले की तरह इंसानों के निकट आना बंद कर दिया है और घरों में घोंसले बनाना भी ? पूरे विश्व में गौरेया पहले की तुलना में सिर्फ 20 प्रतिशत ही रह गई है। आखिर कहां चली गई वह? क्या हमारी आधुनिकता ने गौरैया को हमसे दूर कर दिया...!

वर्तमान में बढ़ते शहरीकरण के कारण आधुनिक घरों का निर्माण इस तरह किया जा रहा है कि उनमें पुराने घरों की तरह न छज्जों के लिए जगह बची है न ही किसी कोने के लिए। जबकि यही स्थान गौरैया के घोंसलों के लिए सबसे उपयुक्त होते हैं। शहरीकरण के नए दौर में घरों में बगीचों के लिए कोई स्थान नहीं है। तेजी से बढ़ रहे मोबाइल टावर भी गौरैया के लिए घातक हैं। शहर से लेकर गांव तक के मोबाइल टावर एवं उससे निकलते रेडिएशन से इनकी जिंदगी संकट में फंस गयी है, जो सीधे इनकी मानसिक और प्रजनन क्षमता दोनों को प्रभावित कर रही है। खेती में रसायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग से कीड़े मकोड़े भी विलुप्त हो चले हैं, जिससे गौरैया के बच्चों के लिए भोजन का संकट खड़ा हो गया है और हमारी गौरैया लुप्तप्राय सी हो रही है।

मध्यप्रदेश में गौरैया के संरक्षण हेतु ‘भोपाल बर्ड्स’ संस्था द्वारा पिछले दस वर्षों से निरंतर कार्य किया जा रहा है। जिसमें जागरूकता के लिए प्रति वर्ष स्कूल, कालेज स्तर पर अनेकों प्रतियोगिताओं का आयोजन, संगोष्ठी जैसे कार्याक्रम शामिल हैं; वहीँ संस्था द्वारा शहरों में गौरैया के नीड़न(रहने की जगह) स्थानों में कमी को देखते हुए कृत्रिम घोंसलों का निर्माण कर विभिन्न शहरों व स्थानों पर व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर वितरित किया जा रहा है और इनके प्रजनन को बढ़ावा देने हेतु प्रेरित किया जा रहा है।

इसी क्रम में गौरैया के संरक्षण के प्रति नागरिकों को जागरूक करने हेतु MP MyGov, भोपाल बर्ड्स, संस्था के साथ मिलकर एक प्रतियोगिता का आयोजन कर रहा है। नीचे चिन्हित किए गये विषयों के आधार पर सभी भारतीय नागरिकों से इस प्रतियोगिता के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित हैं। इस प्रतियोगिता का मुख्य उद्देश्य नागरिकों को हमारी अपनी गौरैया के संरक्षण एवं उसकी सुरक्षा के प्रति संवेदनशील व जागरुक बनाना है।

1. गौरैया से जुड़ी अपनी स्मृतियों को एक कहानी का रूप देकर हमसे साझा करें।

2. यदि आपके घर में भी गौरैया रहती है तो आप उनकी देखभाल के लिए क्या करते है, उसके घोंसले के साथ अपनी फोटो शेयर करें। (इस बात का विशेष ध्यान रखें कि फोटो लेते समय किसी भी प्रकार से गौरैया के घोंसले या उसके बच्चों या फिर उसके रहने के स्थान के आस-पास के वातावरण को नुकसान न पहुंचे।)

3. गौरैया के संरक्षण और नीड़न (रहने का स्थान) को बढ़ाने के लिए हम व्यक्तिगत स्तर पर क्या उपाय कर सकते हैं?

4. हमारी अपनी गौरैया को वापस अपने घर आंगन में कैसे लौटाया जा सकता है।

हम सभी का गौरैया से बचपन का नाता है। यदि हम साथ मिलकर थोड़ी कोशिश करें तो निश्चित ही अपनी गौरैया को वापस अपने घर-आंगन में लौटा सकते हैं। हमारी गौरैया फिर से हमारे घर आंगन में चहचहाने लगेगी और भर देगी घर आंगन को प्रेम और उल्लास से...

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Santanu Datta 6 years 6 months ago

In conservation you need to save from an ant to elephant even sparrow.We need to love nature and creatures of nature. We can take little step like making a bird nest compulsory in every building plan and some plantation in roof. Some taxation rebate may be given to those who are making garden and nest in their home. Some initiative may be taken by forestry and zoological department for planning in this regard.School children nature reading class should be emphasised so that they get interested.

File: 

Shubham Rathore 6 years 6 months ago

पिछले कुछ सालों में शहरों में गौरैया की कम होती संख्या पर चिन्ता प्रकट की जा रही है। आधुनिक स्थापत्य की बहुमंजिली इमारतों में गौरैया को रहने के लिए पुराने घरों की तरह जगह नहीं मिल पाती। सुपरमार्केट संस्कृति के कारण पुरानी पंसारी की दूकानें घट रही हैं। इससे गौरेया को दाना नहीं मिल पाता है। इसके अतिरिक्त मोबाइल टावरों से निकले वाली तंरगों को भी गौरैयों के लिए हानिकारक माना जा रहा है। ये तंरगें चिड़िया की दिशा खोजने वाली प्रणाली को प्रभावित कर रही है और इनके प्रजनन पर भी विपरीत असर पड़ रहा है जिसके

Anklesh sahu 6 years 6 months ago

गौरैया... जिसके नाम से अनगिनत किस्से-कहानियां दर्ज हैं हमारी स्मृतियों में, गौरैया हमारे बचपन की सबसे सुखद स्मृतियों में रची-बसी है। किसको याद नहीं होगा कि कैसे हम बचपन में लाई और चावल के दाने आंगन में डाला करते थे हमारी अपनी गौरैया के लिए… ‘हाँ अपनी!’ हमारे घर की चिड़िया ही तो थी वो; क्योंकि हमारे आस-पड़ोस के हर घर में इनका घोंसला होता था।

Anklesh sahu 6 years 6 months ago

गौरैया... जिसके नाम से अनगिनत किस्से-कहानियां दर्ज हैं हमारी स्मृतियों में, गौरैया हमारे बचपन की सबसे सुखद स्मृतियों में रची-बसी है। किसको याद नहीं होगा कि कैसे हम बचपन में लाई और चावल के दाने आंगन में डाला करते थे हमारी अपनी गौरैया के लिए… ‘हाँ अपनी!’ हमारे घर की चिड़िया ही तो थी वो; क्योंकि हमारे आस-पड़ोस के हर घर में इनका घोंसला होता था। आंगन में या छत की मुंडेर पर वे दाना चुगती हुई झुंड के झुंड फुदकती रहती थीं। कभी आंगन की धूल में फुर्र-फुर्र नहाती हुई, कभी आंगन में लगे आम, अमरुद और लताओं पर

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